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अध्याय 15: महाप्रभु द्वारा सार्वभौम भट्टाचार्य के घर पर प्रसाद स्वीकार करना
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श्लोक 111
श्लोक
2.15.111
“অতএব যাঙ্র মুখে এক কৃষ্ণ-নাম
সেই ত’ বৈষ্ণব, করিহ তাঙ্হার সম্মান”
“अतएव याँर मुखे एक कृष्ण - नाम ।
सेइ त’ वैष्णव, करिह ताँहार सम्मान” ॥111॥
अनुवाद
अन्त में श्री चैतन्य महाप्रभु ने उपदेश दिया, "जो व्यक्ति हरे कृष्ण मन्त्र का जप करता है, उसे वैष्णव माना जाता है, इसीलिए तुम उसका पूरा आदर करना।"
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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