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श्लोक 2.13.86  |
নিত্যানন্দ-প্রভু দুই হাত প্রসারিযা
প্রভুরে ধরিতে চাহে আশ-পাশ ধাঞা |
नित्या नन्द - प्रभु दुइ हात प्रसारिया ।
प्रभुरे धरिते चाहे आश - पाश धा ञा ॥86॥ |
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अनुवाद |
जब नित्यानंद प्रभु ने महाप्रभु को इस तरह इधर-उधर दौड़ते देखा, तो उन्होंने अपने दोनों हाथ फैला दिए और उन्हें पकड़ने की कोशिश की। |
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