श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 2: मध्य लीला  »  अध्याय 13: रथयात्रा के समय महाप्रभु का भावमय नृत्य  »  श्लोक 86
 
 
श्लोक  2.13.86 
নিত্যানন্দ-প্রভু দুই হাত প্রসারিযা
প্রভুরে ধরিতে চাহে আশ-পাশ ধাঞা
नित्या नन्द - प्रभु दुइ हात प्रसारिया ।
प्रभुरे धरिते चाहे आश - पाश धा ञा ॥86॥
 
अनुवाद
जब नित्यानंद प्रभु ने महाप्रभु को इस तरह इधर-उधर दौड़ते देखा, तो उन्होंने अपने दोनों हाथ फैला दिए और उन्हें पकड़ने की कोशिश की।
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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