श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 2: मध्य लीला  »  अध्याय 13: रथयात्रा के समय महाप्रभु का भावमय नृत्य  »  श्लोक 209
 
 
श्लोक  2.13.209 
শ্রী-রূপ-রঘুনাথ-পদে যার আশ
চৈতন্য-চরিতামৃত কহে কৃষ্ণদাস
श्री - रूप - रघुनाथ - पदे यार आश ।
चैतन्य - चरितामृत कहे कृष्णदास ॥209॥
 
अनुवाद
श्री रूप और श्री रघुनाथ के चरण-कमलों में प्रार्थना करते हुए और उनकी दया की कामना करते हुए मैं कृष्णदास, उनके चरणों का अनुसरण करते हुए श्री चैतन्य-चरितामृत का वर्णन कर रहा हूँ।
 
 
इस प्रकार श्री चैतन्य-चरितामृत, मध्य लीला, के अंतर्गत तेरहवाँ अध्याय समाप्त होता है ।
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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