श्री चैतन्य चरितामृत » लीला 2: मध्य लीला » अध्याय 10: महाप्रभु का जगन्नाथ पुरी लौट आना » श्लोक 58 |
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| | श्लोक 2.10.58  | প্রভু কহে, — কি সঙ্কোচ, তুমি নহ পর
জন্মে জন্মে তুমি আমার সবṁশে কিঙ্কর | प्रभु कहे, - कि सङ्कोच, तुमि नह पर ।
जन्मे जन्मे तुमि आमार सवंशे किङ्कर ॥58॥ | | अनुवाद | श्री चैतन्य महाप्रभु ने भवानंद राय की बात मान लेते हुए कहा, "मैं बिना संकोच के स्वीकार करता हूँ, क्योंकि तुम मेरे पराये नहीं हो। कई जन्मों से तुम अपने परिवार के साथ मेरे सेवक रहे हो।" | | |
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