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श्लोक 2.1.56  |
এই ধুযা-গানে নাচেন দ্বিতীয প্রহর
কৃষ্ণ লঞা ব্রজে যাই — এ-ভাব অন্তর |
एइ धुया - गाने नाचेन द्वितीय प्रहर ।
कृष्ण लञा व्रजे याइ - ए - भाव अन्तर ॥56॥ |
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अनुवाद |
श्री चैतन्य महाप्रभु इस गीत (सेहत पराणनाथ) को दिन के दूसरे पहर में विशेष तौर से गाया करते थे और सोचते थे, "मैं कृष्ण को लेकर वृन्दावन लौट जाऊँ।" यह भाव हमेशा उनके हृदय में बना रहता था। |
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