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श्लोक 2.1.47  |
রথ-যাত্রা দেখি’ তাহাঙ্ রহিলা চারি-মাস
প্রভু-সঙ্গে নৃত্য-গীত পরম উল্লাস |
रथ - यात्रा देखि ताहाँ रहिला चारि - मास ।
प्रभु - सङ्गे नृत्य - गीत परम उल्लास ॥47॥ |
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अनुवाद |
जगन्नाथ पुरी की रथ यात्रा समाप्ति के बाद, सभी भक्त चार महीनों तक वहीं रहे और वे चैतन्य महाप्रभु की संगति में कीर्तन (नाम-संकीर्तन और नृत्य) का भरपूर आनंद लेते रहे। |
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