श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 2: मध्य लीला  »  अध्याय 1: श्री चैतन्य महाप्रभु की परवर्ती लीलाएँ  »  श्लोक 223
 
 
श्लोक  2.1.223 
তথাপি যবন জাতি, না করি প্রতীতি
তীর্থ-যাত্রায এত সঙ্ঘট্ট ভাল নহে রীতি
तथापि यवन जाति, ना करि प्रतीति ।
तीर्थ - यात्राय एत संघट्ट भाल नहे रीति ॥223॥
 
अनुवाद
"हालाँकि राजा आपके प्रति सम्मान रखता है, परंतु वह फिर भी यवन जाति का है और उस पर विश्वास नहीं किया जा सकता। हमारा मानना है कि वृंदावन की तीर्थयात्रा के लिए अपने साथ इतनी बड़ी भीड़ रखने की कोई आवश्यकता नहीं है।"
 
 ✨ ai-generated
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2025 vedamrit. All Rights Reserved.