श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 1: आदि लीला  »  अध्याय 9: भक्ति का कल्पवृक्ष  »  श्लोक 6
 
 
श्लोक  1.9.6 
মালাকারঃ স্বযṁ কৃষ্ণ-
প্রেমামর-তরুঃ স্বযম্
দাতা ভোক্তা তত্-ফলানাṁ
যস্ তṁ চৈতন্যম্ আশ্রযে
माला - कारः स्वयं कृष्ण - प्रेमामर - तरुः स्वयम् ।
दाता भोक्ता तत्फलानां यस्तं चैतन्यमाश्रये ॥6॥
 
अनुवाद
मैं पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान् श्री चैतन्य महाप्रभु की शरण लेता हूँ, जो स्वयं कृष्ण - प्रेम रूपी वृक्ष हैं, इसके माली हैं और इसके फलों के दाता और भोग करने वाले दोनों हैं।
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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