श्री चैतन्य चरितामृत » लीला 1: आदि लीला » अध्याय 9: भक्ति का कल्पवृक्ष » श्लोक 30 |
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| | श्लोक 1.9.30  | অঞ্জলি অঞ্জলি ভরি’ ফেলে চতুর্দিশে
দরিদ্র কুডাঞা খায, মালাকার হাসে | अञ्जलि अञ्जलि भ रि’ फेले चतुर्दिशे ।
दरिद्र कुड़ाञा खाय, मालाकार हासे ॥30॥ | | अनुवाद | अलौकिक माली, श्री चैतन्य महाप्रभु ने मुट्ठी भर-भरकर सभी दिशाओं में फल बाँटे, और जब दीन-दुखी, भूखे लोगों ने वो फल खाए, तो वो माली अत्यंत प्रसन्न होकर मुस्कुराते रहे। | | |
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