श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 1: आदि लीला  »  अध्याय 8: लेखक का कृष्ण तथा गुरु से आदेश प्राप्त करना  »  श्लोक 44
 
 
श्लोक  1.8.44 
বৃন্দাবন-দাস কৈল ‘চৈতন্য-মঙ্গল’
তাহাতে চৈতন্য-লীলা বর্ণিল সকল
वृन्दावन - दास कैल ‘चैतन्य - मङ्गल’ ।
ताहाते चैतन्य - लीला वर्णिल सकल ॥44॥
 
अनुवाद
श्री वृंदावन दास ठाकुर ने श्री चैतन्य-मंगल लिखी है और उसमें उन्होंने चैतन्य महाप्रभु की लीलाओं का विस्तारपूर्वक वर्णन किया है।
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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