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श्लोक 1.8.44  |
বৃন্দাবন-দাস কৈল ‘চৈতন্য-মঙ্গল’
তাহাতে চৈতন্য-লীলা বর্ণিল সকল |
वृन्दावन - दास कैल ‘चैतन्य - मङ्गल’ ।
ताहाते चैतन्य - लीला वर्णिल सकल ॥44॥ |
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अनुवाद |
श्री वृंदावन दास ठाकुर ने श्री चैतन्य-मंगल लिखी है और उसमें उन्होंने चैतन्य महाप्रभु की लीलाओं का विस्तारपूर्वक वर्णन किया है। |
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