श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 1: आदि लीला  »  अध्याय 8: लेखक का कृष्ण तथा गुरु से आदेश प्राप्त करना  »  श्लोक 37
 
 
श्लोक  1.8.37 
ভাগবতে যত ভক্তি-সিদ্ধান্তের সার
লিখিযাছেন ইঙ্হা জানি’ করিযা উদ্ধার
भागवते यत भक्ति - सिद्धान्तेर सार ।
लिखियाछेन इँहा जा नि’ करिया उद्धार ॥37॥
 
अनुवाद
श्री चैतन्य- मंगल [जिसे बाद में श्री चैतन्य - भागवत कहा गया] में श्रील वृन्दावन दास ठाकुर ने श्रद्धापूर्वक श्रीमद्भागवत से उद्धरण प्रस्तुत कर भक्ति-भाव का सारांश एवं निष्कर्ष प्रस्तुत किया है।
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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