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श्लोक 1.8.11  |
সন্ন্যাসি-বুদ্ধ্যে মোরে করিবে নমস্কার
তথাপি খণ্ডিবে দুঃখ, পাইবে নিস্তার |
सन्यासि - बुद्ध्ये मोरे करिबे नमस्कार ।
तथापि खण्डिबे दुःख, पाइबे निस्तार ॥11॥ |
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अनुवाद |
"यदि कोई जीव मुझे केवल एक सामान्य साधु समझ कर भी प्रणाम करता है तो उसके सांसारिक कष्ट कम हो जाएंगे और अंत में उसे मुक्ति मिल जाएगी।" |
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