श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 1: आदि लीला  »  अध्याय 7: भगवान् चैतन्य के पाँच स्वरूप  »  श्लोक 87
 
 
श्लोक  1.7.87 
প্রেমার স্বভাবে করে চিত্ত-তনু ক্ষোভ
কৃষ্ণের চরণ-প্রাপ্ত্যে উপজায লোভ
प्रेमार स्वभावे करे चित्त - तनु क्षोभ ।
कृष्णेर चरण - प्राप्त्ये उपजाय लोभ ॥87॥
 
अनुवाद
"भगवत्प्रेम की यह खासियत होती है कि यह व्यक्ति के शरीर में स्वतः ही दिव्य लक्षणों का समावेश कर देता है और उसमें भगवान के चरणकमलों की शरण लेने की लालसा को और भी बढ़ा देता है।"
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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