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श्लोक 51
श्लोक
1.7.51
তোমারে নিন্দযে যত সন্ন্যাসীর গণ
শুনিতে না পারি, ফাটে হৃদয-শ্রবণ
तोमारे निन्दये यत सन्यासीर गण ।
शुनिते ना पारि, फाटे हृदय - श्रवण ॥51॥
अनुवाद
“सभी मायावादी संन्यासी आपकी निंदा कर रहे हैं। हम इन अपशब्दों को नहीं सह सकते, क्योंकि ये निंदाएँ हमारे हृदय को तोड़ रही हैं।”
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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