श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 1: आदि लीला  »  अध्याय 7: भगवान् चैतन्य के पाँच स्वरूप  »  श्लोक 46
 
 
श्लोक  1.7.46 
তপন-মিশ্রের ঘরে ভিক্ষা-নির্বাহণ
সন্ন্যাসীর সঙ্গে নাহি মানে নিমন্ত্রণ
तपन - मिश्रेर घरे भिक्षा - निर्वाहण ।
सन्न्यासीर सङ्गे नाहि माने निमन्त्रण ॥46॥
 
अनुवाद
सैद्धांतिक रूप से श्री चैतन्य महाप्रभु तपन मिश्र के यहाँ भोजन करते थे। न तो अन्य संन्यासियों से वे मेल - जोल रखते थे और न ही उनका निमंत्रण स्वीकार करते थे।
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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