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श्लोक 1.7.46  |
তপন-মিশ্রের ঘরে ভিক্ষা-নির্বাহণ
সন্ন্যাসীর সঙ্গে নাহি মানে নিমন্ত্রণ |
तपन - मिश्रेर घरे भिक्षा - निर्वाहण ।
सन्न्यासीर सङ्गे नाहि माने निमन्त्रण ॥46॥ |
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अनुवाद |
सैद्धांतिक रूप से श्री चैतन्य महाप्रभु तपन मिश्र के यहाँ भोजन करते थे। न तो अन्य संन्यासियों से वे मेल - जोल रखते थे और न ही उनका निमंत्रण स्वीकार करते थे। |
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