श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 1: आदि लीला  »  अध्याय 7: भगवान् चैतन्य के पाँच स्वरूप  »  श्लोक 36
 
 
श्लोक  1.7.36 
পডুযা, পাষণ্ডী, কর্মী, নিন্দকাদি যত
তারা আসি’ প্রভু-পায হয অবনত
पड़या, पाषण्डी, कर्मी, निन्दकादि यत ।
तारा आ सि’ प्रभु - पाय हय अवनत ॥36॥
 
अनुवाद
इस प्रकार छात्र, काफिर, कामुक कार्यकर्ता और आलोचक सभी भगवान के चरणों में आकर आत्मसमर्पण करने लगे।
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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