श्री चैतन्य चरितामृत » लीला 1: आदि लीला » अध्याय 7: भगवान् चैतन्य के पाँच स्वरूप » श्लोक 31-32 |
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| | श्लोक 1.7.31-32  | তাহা দেখি’ মহাপ্রভু করেন চিন্তন
জগত্ ডুবাইতে আমি করিলুঙ্ যতন
কেহ কেহ এডাইল, প্রতিজ্ঞা হ-ইল ভঙ্গ
তা-সবা ডুবৈতে পাতিব কিছু রঙ্গ | ताहा दे खि’ महाप्रभु करेन चिन्तन ।
जगडुबाइते आमि करिलुँ यतन ॥31॥
केह केह एड़ाइल, प्रतिज्ञा होइल भङ्ग ।
ता - सबा डुबैते पातिब किछु रङ्ग ॥32॥ | | अनुवाद | यह देखकर कि मायावादी तथा अन्य लोग पलायन कर रहे हैं, चैतन्य महाप्रभु ने सोचा, “मैं चाहता था कि हर कोई भगवत्प्रेम की इस बाढ़ में डूब जाए, पर कुछ लोग तो बच निकले हैं। तो अब मैं ऐसा उपाय करूँगा जिससे वे भी डूब जाएँगे।” | | |
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