श्री चैतन्य चरितामृत » लीला 1: आदि लीला » अध्याय 7: भगवान् चैतन्य के पाँच स्वरूप » श्लोक 28 |
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| | श्लोक 1.7.28  | যত যত প্রেম-বৃষ্টি করে পঞ্চ-জনে
তত তত বাঢে জল, ব্যাপে ত্রি-ভুবনে | यत यत प्रेम - वृष्टि करे पञ्च - जने ।
तत तत बाढ़े जल, व्यापे त्रि - भुवने ॥28॥ | | अनुवाद | पंचतत्त्व के पाँचों सदस्य जब भगवत्प्रेम की जितनी अधिक वृष्टि कराते हैं, तो भगवत्प्रेम की बाढ़ उतनी ही अधिक बढ़ती जाती है और सारे विश्व में फैल जाती है। | | |
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