श्री चैतन्य चरितामृत » लीला 1: आदि लीला » अध्याय 7: भगवान् चैतन्य के पाँच स्वरूप » श्लोक 22 |
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| | श्लोक 1.7.22  | পুনঃ পুনঃ পিযাইযা হয মহামত্ত
নাচে, কান্দে, হাসে, গায, যৈছে মদ-মত্ত | पुनः पुनः पियाइया हय महामत्त ।
नाचे, कान्दे, हासे, गाय, यैछे मद - मत्त ॥22॥ | | अनुवाद | स्वयं श्री पंचतत्वों ने बार-बार नृत्य किया और इस प्रकार भगवान के प्रति प्रेम रूपी अमृत को पीना सरल बना दिया। वे नाचते, रोते, हंसते और जप करते थे, मानो वे पागल हों और इस तरह उन्होंने भगवान के प्रति प्रेम का वितरण किया। | | |
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