श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 1: आदि लीला  »  अध्याय 7: भगवान् चैतन्य के पाँच स्वरूप  »  श्लोक 17
 
 
श्लोक  1.7.17 
গদাধর-পণ্ডিতাদি প্রভুর ‘শক্তি’-অবতার
‘অন্তরঙ্গ-ভক্ত’ করি’ গণন যাঙ্হার
गदाधर - पण्डितादि प्रभुर ‘शक्ति’ - अवतार ।
‘अन्तरङ्ग - भक्त’ करि’ गणन याँहार ॥17॥
 
अनुवाद
गदाधर पंडित इत्यादि भक्तों को भगवान की अंतर्निहित शक्ति का अवतार माना जाना चाहिए। वे भगवान की सेवा में लगे हुए अंतरंग भक्त हैं।
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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