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श्लोक 1.7.17  |
গদাধর-পণ্ডিতাদি প্রভুর ‘শক্তি’-অবতার
‘অন্তরঙ্গ-ভক্ত’ করি’ গণন যাঙ্হার |
गदाधर - पण्डितादि प्रभुर ‘शक्ति’ - अवतार ।
‘अन्तरङ्ग - भक्त’ करि’ गणन याँहार ॥17॥ |
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अनुवाद |
गदाधर पंडित इत्यादि भक्तों को भगवान की अंतर्निहित शक्ति का अवतार माना जाना चाहिए। वे भगवान की सेवा में लगे हुए अंतरंग भक्त हैं। |
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