श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 1: आदि लीला  »  अध्याय 7: भगवान् चैतन्य के पाँच स्वरूप  »  श्लोक 16
 
 
श्लोक  1.7.16 
শ্রীবাসাদি যত কোটি কোটি ভক্ত-গণ
‘শুদ্ধ-ভক্ত’-তত্ত্ব-মধ্যে তাঙ্-সবার গণন
श्रीवासादि यत कोटि कोटि भक्त - गण ।
‘शुद्ध - भक्त’ - तत्त्व - मध्ये ताँ - सबार गणन ॥16॥
 
अनुवाद
प्रभु के अनगिनत पवित्र भक्त हैं, जिनमें श्रीवास ठाकुर प्रमुख हैं। इन्हें शुद्ध भक्त कहा जाता है।
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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