श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 1: आदि लीला  »  अध्याय 7: भगवान् चैतन्य के पाँच स्वरूप  »  श्लोक 130
 
 
श्लोक  1.7.130 
‘প্রণব’, মহা-বাক্য — তাহা করি’ আচ্ছাদন
মহাবাক্যে করি ‘তত্ ত্বম্ অসি’র স্থাপন
‘प्रणव, महा - वाक्य - ताहा क रि’ आच्छादन ।
महावाक्ये क रि’ तत्त्वम सि’र स्थापन ॥130॥
 
अनुवाद
प्रणव (ॐकार) वेदों में महावाक्य (महामन्त्र) है। शंकराचार्य के अनुयायी इसे तत्त्वमसि मंत्र के बल पर बिना किसी प्रमाण के बल देते हैं या इसको आच्छादित करके तत्त्वमसि मंत्र पर बल देते हैं।
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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