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श्लोक 1.7.13  |
‘ভক্ত-অবতার’ তাঙ্র আচার্য-গোসাঞি
এই তিন তত্ত্ব সবে প্রভু করি’ গাই |
‘भक्त - अवता र’ ताँर आचार्य - गोसाञि ।
एइ तिन तत्त्व सबे प्रभु करि’ गाइ ॥13॥ |
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अनुवाद |
श्री अद्वैत आचार्य भगवान चैतन्य के भक्त रूपी अवतार हैं। इसलिए ये तीनों तत्त्व (चैतन्य महाप्रभु, नित्यानंद प्रभु और अद्वैत गोस्वामी) आश्रय देने वाले या प्रभु हैं। |
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