श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 1: आदि लीला  »  अध्याय 7: भगवान् चैतन्य के पाँच स्वरूप  »  श्लोक 129
 
 
श्लोक  1.7.129 
সর্বাশ্রয ঈশ্বরের প্রণব উদ্দেশ
‘তত্ ত্বম্ অসি’ — বাক্য হয বেদের একদেশ
सर्वाश्रय ईश्वरेर प्रणव उद्देश ।
‘तत्त्वम सि’ वाक्य हय वेदेर एकदेश ॥129॥
 
अनुवाद
प्रणव (ॐकार) समस्त वैदिक ज्ञान का संग्राहक है; यह ही भगवान का उद्देश्य है। "तत्वमसि" वेदज्ञान की आंशिक व्याख्या है।
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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