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श्लोक 1.7.12  |
ইথে ভক্ত-ভাব ধরে চৈতন্য গোসাঞি
‘ভক্ত-স্বরূপ’ তাঙ্র নিত্যানন্দ-ভাই |
इथे भक्त - भाव धरे चैतन्य गोसाञि ।
‘भक्त - स्वरूप’ ताँर नित्यानन्द - भाई ॥12॥ |
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अनुवाद |
परम शिक्षक श्री चैतन्य महाप्रभु, इस लिए भक्त का रूप धारण करते हैं और भगवान नित्यानंद को अपने बड़े भाई के रूप में स्वीकार करते हैं। |
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