श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 1: आदि लीला  »  अध्याय 7: भगवान् चैतन्य के पाँच स्वरूप  »  श्लोक 114
 
 
श्लोक  1.7.114 
তাঙ্র দোষ নাহি, তেঙ্হো আজ্ঞা-কারী দাস
আর যেই শুনে তার হয সর্ব-নাশ
ताँर दोष नाहि, तेंहो आज्ञा - कारी दास ।
आर येइ शुने तार हय सर्व - नाश ॥114॥
 
अनुवाद
शिवजी के अवतार श्री शंकराचार्य निर्दोष हैं क्योंकि वे भगवान के आदेशों का पालन करने वाले दास हैं। लेकिन जो लोग उनके मायावादी दर्शन का पालन करते हैं, उनका नाश होना निश्चित है। उनकी सारी साधना और आध्यात्मिक प्रगति व्यर्थ हो जाएगी।
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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