श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 1: आदि लीला  »  अध्याय 7: भगवान् चैतन्य के पाँच स्वरूप  »  श्लोक 105
 
 
श्लोक  1.7.105 
তোমার প্রভাবে সবার আনন্দিত মন
কভু অসঙ্গত নহে তোমার বচন
तोमार प्रभावे सबार आनन्दित मन ।
कभु असङ्गत नहे तोमार वचन ॥105॥
 
अनुवाद
"हे महान गुरु, आपके प्रभाव से हमारे मन बहुत प्रसन्न हैं और हमें पूरा विश्वास है कि आपके शब्द कभी भी अनुचित या असत्य नहीं होंगे। इसलिए, कृपया आप वेदांत सूत्र पर बोलें।"
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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