श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 1: आदि लीला  »  अध्याय 7: भगवान् चैतन्य के पाँच स्वरूप  »  श्लोक 102
 
 
श्लोक  1.7.102 
এত শুনি’ হাসি’ প্রভু বলিলা বচন
দুঃখ না মানহ যদি, করি নিবেদন
एत शुनि’ हासि’ प्रभु बलिला वचन ।
दुःख ना मानह यदि, करि निवेदन ॥102॥
 
अनुवाद
मायावादी संन्यासियों की बातें सुनकर श्री चैतन्य महाप्रभु हल्के से मुस्कुराए और बोले, "महानुभावों, यदि आप बुरा न मानें तो मैं वेदांत दर्शन के बारे में कुछ कहना चाहूँगा।"
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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