श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 1: आदि लीला  »  अध्याय 7: भगवान् चैतन्य के पाँच स्वरूप  »  श्लोक 100
 
 
श्लोक  1.7.100 
যে কিছু কহিলে তুমি, সব সত্য হয
কৃষ্ণ-প্রেমা সেই পায, যার ভাগ্যোদয
ये किछु कहिले तुमि, सब सत्य हय ।
कृष्ण - प्रेमा सेइ पाय, यार भाग्योदय ॥100॥
 
अनुवाद
प्रिय चैतन्य महाप्रभु, आपने जो भी कहा है, वह सब सच है। भाग्यशाली लोगों को ही भगवान के प्रति प्रेम मिलता है।
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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