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अध्याय 7: भगवान् चैतन्य के पाँच स्वरूप
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श्लोक 10
श्लोक
1.7.10
একলে ঈশ্বর-তত্ত্ব চৈতন্য-ঈশ্বর
ভক্ত-ভাবময তাঙ্র শুদ্ধ কলেবর
एकले ईश्वर - तत्त्व चैतन्य - ईश्वर ।
भक्त - भावमय ताँर शुद्ध कलेवर ॥10॥
अनुवाद
परम नियंता श्री चैतन्य महाप्रभु, जो एकमात्र भगवान हैं, भावोत्कर्ष में डूबकर भक्त बन गए हैं, फिर भी उनका शरीर दिव्य है और भौतिक रूप से कलुषित नहीं है।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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