श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 1: आदि लीला  »  अध्याय 6: श्रीअद्वैत आचार्य की महिमाएँ अध्याय सात  »  श्लोक 72
 
 
श्लोक  1.6.72 
দ্বারকাতে রুক্মিণ্য্-আদি যতেক মহিষী
তাঙ্হারাও আপনাকে মানে কৃষ্ণ-দাসী
द्वारकाते रुक्मिण्यादि यतेक महिषी ।
ताँहाराओ आपनाके माने कृष्ण - दासी ॥72॥
 
अनुवाद
द्वारकाधाम में रुक्मिणी आदि सभी रानियाँ भी अपने को भगवान श्रीकृष्ण की दासियाँ ही मानती हैं।
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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