श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 1: आदि लीला  »  अध्याय 6: श्रीअद्वैत आचार्य की महिमाएँ अध्याय सात  »  श्लोक 61
 
 
श्लोक  1.6.61 
কর্মভির্ ভ্রাম্যমাণানাṁ
যত্র ক্বাপীশ্বরেচ্ছযা
মঙ্গলাচরিতৈর্ দানৈ
রতির্ নঃ কৃষ্ণ ঈশ্বরে
कर्मभिर्भाग्यमाणानां यत्र क्वापीश्वरेच्छया ।
मङ्गलाचरितैर्दानै रतिर्नः कृष्ण ईश्वरे ॥61॥
 
अनुवाद
कर्म के वशीभूत होकर ईश्वरीय इच्छा से भौतिक जगत में जहाँ भी भटकें, हमारे शुभ कर्म कृष्ण के प्रति हमारे अनुराग को बढ़ाते रहें।
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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