श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 1: आदि लीला  »  अध्याय 6: श्रीअद्वैत आचार्य की महिमाएँ अध्याय सात  »  श्लोक 52
 
 
श्लोक  1.6.52 
চৈতন্য-গোসাঞি মোরে করে গুরু জ্ঞান
তথাপিহ মোর হয দাস-অভিমান
चैतन्य - गोसाञि मोरे करे गुरु ज्ञान ।
तथापिह मोर हय दास - अभिमान ॥52॥
 
अनुवाद
अद्वैत आचार्य मन में सोचते हैं, "भगवान चैतन्य महाप्रभु मुझे अपना गुरु मानते हैं पर मैं अपने आपको उनका दासीभूत अनुभव करता हूँ।"
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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