|
|
|
श्लोक 1.6.52  |
চৈতন্য-গোসাঞি মোরে করে গুরু জ্ঞান
তথাপিহ মোর হয দাস-অভিমান |
चैतन्य - गोसाञि मोरे करे गुरु ज्ञान ।
तथापिह मोर हय दास - अभिमान ॥52॥ |
|
अनुवाद |
अद्वैत आचार्य मन में सोचते हैं, "भगवान चैतन्य महाप्रभु मुझे अपना गुरु मानते हैं पर मैं अपने आपको उनका दासीभूत अनुभव करता हूँ।" |
|
|
|
✨ ai-generated |
|
|