श्री चैतन्य चरितामृत » लीला 1: आदि लीला » अध्याय 6: श्रीअद्वैत आचार्य की महिमाएँ अध्याय सात » श्लोक 47 |
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| | श्लोक 1.6.47  | দাস্য-ভাবে আনন্দিত পারিষদ-গণ
বিধি, ভব, নারদ আর শুক, সনাতন | दास्य - भावे आनन्दित पारि षद - गण ।
विधि, भव, नारद आर शुक, सनातन ॥47॥ | | अनुवाद | भगवान कृष्ण के सभी सहयोगी, जैसे कि ब्रह्मा, शिव, नारद, शुक और सनातन कुमार, दास्य भाव में बहुत अधिक प्रसन्न रहते हैं। | | |
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