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श्लोक 1.6.46  |
পরম-প্রেযসী লক্ষ্মী হৃদযে বসতি
তেঙ্হো দাস্য-সুখ মাগে করিযা মিনতি |
परम - प्रेयसी लक्ष्मी हृदये वसति ।
तेंहो दास्य - सुख मागे करिया मिनति ॥46॥ |
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अनुवाद |
यद्यपि श्री कृष्ण के वक्षस्थल पर उनकी परम प्रियतमा लक्ष्मीजी निवास करती हैं, किन्तु फिर भी उनकी यही याचना रहती है कि उन्हें उनके चरणों की सेवा का आनंद प्राप्त होता रहे। |
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