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श्लोक 1.6.44  |
কৃষ্ণ-দাস-অভিমানে যে আনন্দ-সিন্ধু
কোটী-ব্রহ্ম-সুখ নহে তার এক বিন্দু |
कृष्ण - दास - अभिमाने ये आनन्द - सिन्धु ।
कोटी - ब्रह्म - सुख नहे तार एक बिन्दु ॥44॥ |
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अनुवाद |
श्रीकृष्ण के लिए सेवा भाव का भाव आत्मा में आनन्द का ऐसा सागर बना देता है कि ब्रह्म से एकाकार होने का आनन्द भी इसकी एक बूंद के बराबर नहीं है, चाहे इसे करोड़ों गुना बढ़ा दिया जाए। |
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