श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 1: आदि लीला  »  अध्याय 6: श्रीअद्वैत आचार्य की महिमाएँ अध्याय सात  »  श्लोक 42
 
 
श्लोक  1.6.42 
চৈতন্য-গোসাঞিকে আচার্য করে ‘প্রভু’-জ্ঞান
আপনাকে করেন তাঙ্র ‘দাস’-অভিমান
चैतन्य - गोसाञि के आचार्य करे ‘प्रभु’ - ज्ञान ।
आपनाके करेन ताँर ‘दास’ - अभिमान ॥42॥
 
अनुवाद
किन्तु श्री अद्वैत आचार्य जी श्री चैतन्य महाप्रभु जी को अपना मालिक मानते हैं और स्वयं को चैतन्य महाप्रभु जी का नौकर मानते हैं।
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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