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श्लोक 1.6.41  |
লৌকিক-লীলাতে ধর্ম-মর্যাদা-রক্ষণ
স্তুতি-ভক্ত্যে করেন তাঙ্র চরণ বন্দন |
लौकिक - लीलाते धर्म - मर्यादा - रक्षण ।
स्तुति - भक्त्ये करेन ताँर चरण वन्दन ॥41॥ |
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अनुवाद |
धर्म के सिद्घांतों के प्रति सावधानता बनाए रखते हुए, श्री चैतन्य महाप्रभु नम्र प्रार्थना और भक्ति के साथ श्री अद्वैत आचार्य के चरण कमलों को प्रणाम करते हैं। |
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