श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 1: आदि लीला  »  अध्याय 6: श्रीअद्वैत आचार्य की महिमाएँ अध्याय सात  »  श्लोक 20
 
 
श्लोक  1.6.20 
অদ্বৈত-রূপে করে শক্তি-সঞ্চারণ
অতএব অদ্বৈত হযেন মুখ্য কারণ
अद्वैत - रूपे करे शक्ति - सञ्चारण ।
अतएव अद्वैत हयेन मुख्य कारण ॥20॥
 
अनुवाद
अद्वैत के रूप में वह पदार्थों में रचनात्मक ऊर्जा का संचार करते हैं। इसलिए, अद्वैत ही सृजन का मूल कारण है।
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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