श्री चैतन्य चरितामृत » लीला 1: आदि लीला » अध्याय 6: श्रीअद्वैत आचार्य की महिमाएँ अध्याय सात » श्लोक 14-15 |
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| | श्लोक 1.6.14-15  | মাযা যৈছে দুই অṁশ — ‘নিমিত্ত’, ‘উপাদান’
মাযা — ‘নিমিত্ত’-হেতু, উপাদান — ‘প্রধান’
পুরুষ ঈশ্বর ঐছে দ্বি-মূর্তি হ-ইযা
বিশ্ব-সৃষ্টি করে ‘নিমিত্ত’ ‘উপাদান’ লঞা | माया यैछे दुइ अंश - ‘निमित्त’, ‘उपादा न’ ।
माया निमित्त’ - हेतु, उपादान - प्रधान’ ॥14॥
पुरुष ईश्वर ऐछे द्वि - मूर्ति हइया ।
विश्व - सृष्टि करे ‘निमित्त’ ‘उपादा न’ लञा ॥15॥ | | अनुवाद | जिस तरह बाहरी ऊर्जा के दो भाग हैं - कार्य कुशल कारण [निमित्त] और भौतिक कारण [उपाधान], माया कार्य कुशल कारण है और प्रधान भौतिक कारण - इसलिए भगवान विष्णु, परम पुरुषोत्तम, भौतिक जगत को कार्य कुशल और भौतिक कारणों के साथ बनाने के लिए दो रूप धारण करते हैं। | | |
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