श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 1: आदि लीला  »  अध्याय 6: श्रीअद्वैत आचार्य की महिमाएँ अध्याय सात  »  श्लोक 118
 
 
श्लोक  1.6.118 
জয জয জয শ্রী-অদ্বৈত আচার্য
জয জয শ্রী-চৈতন্য, নিত্যানন্দ আর্য
जय जय जय श्री - अद्वैत आचार्य ।
जय जय श्री - चैतन्य, नित्यानन्द आर्य ॥118॥
 
अनुवाद
श्री अद्वैत आचार्य की जय हो, जय हो! श्री चैतन्य महाप्रभु और श्रेष्ठ श्री नित्यानंद प्रभु की जय हो, जय हो!
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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