श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 1: आदि लीला  »  अध्याय 6: श्रीअद्वैत आचार्य की महिमाएँ अध्याय सात  »  श्लोक 108
 
 
श्लोक  1.6.108 
স্বা-মাধুর্য আস্বাদিতে করেন যতন
ভক্ত-ভাব বিনু নহে তাহা আস্বাদন
स्वा - माधुर्य आस्वादिते करेन यतन ।
भक्त - भाव विनु नहे ताहा आस्वादन ॥108॥
 
अनुवाद
वो अपने माधुर्य का आनंद स्वयं लेना चाहते हैं, पर वो भक्त के भाव को स्वीकार किए बिना ऐसा नहीं कर सकते।
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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