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श्लोक 1.6.108  |
স্বা-মাধুর্য আস্বাদিতে করেন যতন
ভক্ত-ভাব বিনু নহে তাহা আস্বাদন |
स्वा - माधुर्य आस्वादिते करेन यतन ।
भक्त - भाव विनु नहे ताहा आस्वादन ॥108॥ |
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अनुवाद |
वो अपने माधुर्य का आनंद स्वयं लेना चाहते हैं, पर वो भक्त के भाव को स्वीकार किए बिना ऐसा नहीं कर सकते। |
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