श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 1: आदि लीला  »  अध्याय 6: श्रीअद्वैत आचार्य की महिमाएँ अध्याय सात  »  श्लोक 107
 
 
श्लोक  1.6.107 
অন্যের আছুক্ কার্য, আপনে শ্রী-কৃষ্ণ
আপন-মাধুর্য-পানে হ-ইলা সতৃষ্ণ
अन्येर आछुक्कार्य, आपने श्री - कृष्ण ।
आपन - माधुर्घ - पाने हइला सतृष्ण ॥107॥
 
अनुवाद
दूसरों की तो बात ही क्या, खुद भगवान कृष्ण भी अपनी मिठास का स्वाद लेने के लिए लालायित रहते हैं।
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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