श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 1: आदि लीला  »  अध्याय 5: भगवान् नित्यानन्द बलराम की महिमाएँ  »  श्लोक 85
 
 
श्लोक  1.5.85 
যদ্যপি সর্বাশ্রয তিঙ্হো, তাঙ্হাতে সṁসার
অন্তরাত্মা-রূপে তিঙ্হো জগত্-আধার
यद्यपि सर्वाश्रय तिंहो, ताँहाते संसार ।
अन्तरात्मा - रूपे तिंहो जगताधार ॥85॥
 
अनुवाद
यद्यपि भगवान सर्वत्र व्यापक हैं और समस्त ब्रह्मांड उन्हीं में समाए हुए हैं, तथापि वे परमात्मा के रूप में हर वस्तु के आधार भी हैं।
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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