श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 1: आदि लीला  »  अध्याय 5: भगवान् नित्यानन्द बलराम की महिमाएँ  »  श्लोक 8
 
 
श्लोक  1.5.8 
শ্রী-বলরাম গোসাঞি মূল-সঙ্কর্ষণ
পঞ্চ-রূপ ধরি’ করেন কৃষ্ণের সেবন
श्री - बलराम गोसाञि मूल - सङ्कर्षण ।
पञ्च - रूप ध रि’ करेन कृष्णेर सेवन ॥8॥
 
अनुवाद
भगवान् बलराम मूल संकर्षण हैं। वे भगवान् कृष्ण की सेवा के लिए पांच अन्य रूप लेते हैं।
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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