श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 1: आदि लीला  »  अध्याय 5: भगवान् नित्यानन्द बलराम की महिमाएँ  »  श्लोक 75
 
 
श्लोक  1.5.75 
যাঙ্হাকে ত’ কলা কহি, তিঙ্হো মহা-বিষ্ণু
মহা-পুরুষাবতারী তেঙ্হো সর্ব-জিষ্ণু
याँहाके त’ कला कहि, तिंहो महा - विष्णु ।
महा - पुरुषावतारी तेंहो सर्व - जिष्णु ॥75॥
 
अनुवाद
मैं कहता हूँ कि यह कला महाविष्णु है। वह महापुरुष हैं, जो अन्य पुरुषों के स्रोत हैं और जो सर्वव्यापी हैं।
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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