श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 1: आदि लीला  »  अध्याय 5: भगवान् नित्यानन्द बलराम की महिमाएँ  »  श्लोक 51
 
 
श्लोक  1.5.51 
বৈকুণ্ঠ-বাহিরে যেই জ্যোতির্-ময ধাম
তাহার বাহিরে ‘কারণার্ণব’ নাম
वैकुण्ठ - बाहिरे येइ ज्योतिर्मय धाम ।
ताहार बाहिरे ‘कारणार्ण व’ नाम ॥51॥
 
अनुवाद
वैकुण्ठ लोकों के बाहर अवैयक्तिक ब्रह्म का तेज है और उस तेज से परे कारणार्णव या कारण सागर है।
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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