|
|
|
श्लोक 1.5.51  |
বৈকুণ্ঠ-বাহিরে যেই জ্যোতির্-ময ধাম
তাহার বাহিরে ‘কারণার্ণব’ নাম |
वैकुण्ठ - बाहिरे येइ ज्योतिर्मय धाम ।
ताहार बाहिरे ‘कारणार्ण व’ नाम ॥51॥ |
|
अनुवाद |
वैकुण्ठ लोकों के बाहर अवैयक्तिक ब्रह्म का तेज है और उस तेज से परे कारणार्णव या कारण सागर है। |
|
|
|
✨ ai-generated |
|
|