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श्लोक 1.5.50  |
মাযা-ভর্তাজাণ্ড-সঙ্ঘাশ্রযাঙ্গঃ
শেতে সাক্ষাত্ কারণাম্ভোধি-মধ্যে
যস্যৈকাṁশঃ শ্রী-পুমান্ আদি-দেবস্
তṁ শ্রী-নিত্যানন্দ-রামṁ প্রপদ্যে |
माया - भर्ताजाण्ड - सङ्घाश्रयाङ्गः शेते साक्षात्कारणाम्भोधि - मध्ये ।
यस्यैकांशः श्री - पुमानादि - देवस् तं श्री - नित्यानन्द - रामं प्रपद्ये ॥50॥ |
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अनुवाद |
मैं श्री नित्यानंद राम के चरणों में पूर्ण नमन करता हूं, जिनके अंश रूप में कारण सागर में लेटे हुए कारणोदकशायी विष्णु आदि पुरुष हैं, माया के पति हैं और समस्त ब्रह्मांडों के आश्रय हैं। |
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