श्री चैतन्य चरितामृत » लीला 1: आदि लीला » अध्याय 5: भगवान् नित्यानन्द बलराम की महिमाएँ » श्लोक 47 |
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| | श्लोक 1.5.47  | সর্বাশ্রয, সর্বাদ্ভুত, ঐশ্বর্য অপার
‘অনন্ত’ কহিতে নারে মহিমা যাঙ্হার | सर्वाश्रय, सर्वाद्भुत, ऐश्वर्य अपार ।
‘अनन्त’ कहते नारे महिमा याँहार ॥47॥ | | अनुवाद | वे (संकर्षण) संपूर्ण का आश्रय हैं। उनका हर प्रकार से कोई सानी नहीं, उनकी संपन्नता अपरिमित और अनंत है। वे इतने महान हैं कि अनंत भी उनकी महिमा का वर्णन नहीं कर सकते हैं। | | |
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