श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 1: आदि लीला  »  अध्याय 5: भगवान् नित्यानन्द बलराम की महिमाएँ  »  श्लोक 41
 
 
श्लोक  1.5.41 
বাসুদেব-সঙ্কর্ষণ-প্রদ্যুম্নানিরুদ্ধ
‘দ্বিতীয চতুর্-ব্যূহ’ এই — তুরীয, বিশুদ্ধ
वासुदेव - सङ्कर्षण - प्रद्युम्नानिरुद्ध ।
‘द्वितीय चतुर्व्यह’ एइ - तुरीय, विशुद्ध ॥41॥
 
अनुवाद
द्वितीय चतुर्व्यह में वासुदेव, संकर्षण, प्रद्युम्न और अनिरुद्ध शामिल हैं। वे विशुद्ध रूप से दिव्य हैं।
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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